रासायनिक आतंक दुनिया में सबसे बड़े खतरे के रूप में बढ़ रहा है। अन्य विनाशक हथियारों की तुलना में इस आतंक के हथियारों से निपटना अभी भी राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए सबसे बड़ी चुनौती बना हुआ है। भारत जैसे बड़ी आबादी वाले देश में ऐसे कैमिकल एजेंट्स से निपटने के लिए पुख्ता इंतजाम आवश्यक हैं। ग्वालियर स्थित रक्षा शोध एवं विकास स्थापना (डीआरडीई) स्वदेशी कैमिकल डिटेक्टर और विशेष सूट बना रहा है, जो रासायिक एवं जैविक हमलों से निपटने में मदद करेंगे। अभी ऐसे डिटेक्टर के लिए भारतीय सेना विदेशों पर निर्भर है, लेकिन आने वाले समय में ये उपकरण उन्हें देश में मिल सकेंगे।
डिटेक्टर बाजारों में हो सकेगा इंस्टॉल
ये एजेंट्स हवा में गैस रूप में फैलते हैं। ये डिटेक्टर ऐसे तत्वों की मौजूदगी पहचान लेगा। इसमें ऑडियो अलार्म की सुविधा है। इसके दो मोड हैं। पहला- पॉजिटिव, जो नर्व एजेंट्स को पहचान लेता है। दूसरा- नेगेटिव, जो अन्य रासायनिक और विषैले तत्वों के प्रति सचेत करेगा।
फायदा : आकार में छोटा और ट्रेनों, बाजारों, एयरपोर्ट और भीड़ वाली जगहों पर इंस्टॉल हो सकेगा।
बायो सूट.. त्वचा का कवच
डिटेक्टर के अलावा डीआरडीई एक जैविक सूट भी बनाने के करीब है, जो बायोलॉजिकल वॉरफेयर के समय घातक एजेंट्स से बचाएगा। इससे मिलते-जुलते कैमिकल सूट्स पहले ही बनाए जा चुके हैं। इसमें विशेष फैब्रिक की कई शील्ड होंगी, जो wwघातक कणों को स्किन तक नहीं पहुंचने देंगी। डीआरडीई में बन रहा सूट क्वालिटी के मामले में आयातित सूट्स से भी उन्नत होगा।
- डीआरडीई में रासायनिक सूट बनाए जा चुके हैं। इन सूट्स का सेना भी उपयोग कर रही है। ये पहनने में बेहद हल्के हैं और दो अंतरराष्ट्रीय लैब से प्रमाणित हैं।
फायदा : युद्ध में जवानों, सैन्य क्षेत्रों में बायो एजेंट्स जैसे जानलेवा तत्वों को फैलने से रोकेगा।
डिटेक्टर के लैब-फील्ड ट्रायल्स पूरे, इसे जल्द देश को सौंपेंगे
डीआरडीई ग्वालियर में किए जा रहे अनुसंधान कार्याें की यहां के डायरेक्टर देवेंद्र दुबे ने दैनिक भास्कर से विशेष बातचीत में साझा की। रासायनिक एवं जैविक युद्ध के हथियारों से निपटने के लिए अमेरिका, रूस जैसे विकसित राष्ट्र अरबों डॉलर खर्च कर रहे हैं। भारत में डीआरडीई को इन्हीं बायो-कैमिकल एजेंट्स से निपटने के लिए विशेष तकनीक और उसी तकनीक से बचाव उपकरण बनाने की जिम्मेदारी मिली है।
तीन प्रोजेक्ट पाइपलाइन में
दुबे ने बताया कि इन घातक एजेंट्स की सतत निगरानी ही बचाव का मुख्य उपाय है। इससे निपटने के लिए इस वर्ष तीन योजनाएं पाइपलाइन में हैं। इनमें शमन सिस्टम के उन्नत संस्करण, कार्बन कपड़े से बना रक्षा सूट और रासायनिक डिटेक्टर के उन्नत संस्करण का निर्माण आदि शामिल हैं।